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किस समय में एवं किस अंग में कुण्डली के अनुसार रोग होता है ।।

किस समय में एवं किस अंग में कुण्डली के अनुसार रोग होता है ।। Kis Ang Me And Kis Samay Me Rog Hota Hai.

हैल्लो फ्रेण्ड्सzzz,

मित्रों, रोग, मृत्यु, जरा और व्याधि जीवन है तो आना ही है । आप अपनी कुंडली के अनुसार ये बात स्पष्टता पूर्वक जान सकते हैं, कि आपके जीवन काल में किस उम्र में एवं किस अंग में आपको किस प्रकार का रोग हो सकता है ।।

इतना ही नहीं अपितु यह भी कुंडली के माध्यम से जाना जा सकता है, की कौन सा रोग हुआ है, तो किस ग्रह के वजह से हुआ है एवं उसको ठीक करने के लिये किस ग्रह की उपासना करके हम उसे ठीक कर सकते हैं ।।

मित्रों, अगर आप ज्योतिष को मानते हैं, तो यह तय है, की ग्रहों के वजह से ही रोग होते हैं । और अगर किसी ग्रह विशेष के वजह से रोग हुआ है, तो उस ग्रह से सम्बंधित उपाय करने से वह रोग ठीक भी हो सकता है ।।

कुंडली के रोग कारक ग्रह जब गोचर में जन्मकालीन स्थिति में आते हैं और अंतर-प्रत्यंतर दशा में इनका समय चलता है तो उसी समय वो ग्रह अपने स्वाभाव के अनुसार रोग उत्पन्न करता है ।

यदि षष्ठेश, अष्टमेश एवं द्वादशेश तथा रोग कारक ग्रह अशुभ तारा नक्षत्रों में स्थित होते हैं तो रोग की चिकित्सा कितनी ही क्यों कर लो, निष्फल ही हो जाती है ।।


यदि षष्ठेश चर राशि में तथा चर नवांश में स्थित होता है, तो रोग की अवधि छोटी होती है । द्विस्वभाव में स्थित होने पर सामान्य अवधि होती है । परन्तु स्थिर राशि में होने पर रोग दीर्घकालीन होते हैं ।।


अब बात करते हैं ऐसे ग्रह यदि मेष राशि में हों तो सर मस्तिष्क, मुख, सम्बंधित हड्डियों में रोग होता है । वृषभ में हो तो गर्दन, गाल, दाया नेत्र में रोग सम्भव है । मिथुन में हो तो कन्धा, हाथ, श्वासनली एवं दोनों बाहू में ।।

कर्क में हो तो ह्रदय, छाती, स्तन, फेफड़ा, पाचनतंत्र एवं उदर प्रभावित होता है । सिंह में हो तो ह्रदय, उदर, नाडी, स्पाईनल एवं पीठ की हड्डिया रोग ग्रसित हो जाती हैं ।।

कन्या में कमर, आंत, लिवर, पित्ताशय, गुर्दे और अंडकोष को प्रभावित करती है । तुला में वस्ति, नितम्ब, मूत्राशय और गुर्दा रोगों से पीड़ित होता है । वृश्चिक में गुप्तेंद्रिया, अंडकोष एवं गुप्तस्थान रोगी हो जाता है ।।

मित्रों, धनु राशि में रोग कारक ग्रहों के आने से दोनों जांघें और नितम्ब रोगी होता है । मकर में दोनों घुटने एवं हड्डियों का जोड़ रोग ग्रसित हो जाता है । कुम्भ में हो तो दोनों पिंडालिया और टाँगे रोगी हो जाती हैं ।।

मीन में हों तो दोनों पैर और तलुए प्रभावित होती हैं । राशियों के भांति ग्रह नक्षत्र में भी स्थायी गुण-दोष होते हैं । जिनके आधार पर रोगों के परिक्षण में सरलता होती है ।।

मित्रों, कुंडली में यदि चन्द्र-राहु की युति हो तो पागलपन या निमोनिया रोग से कष्ट होगा । गुरु-राहु की युति हो तो दमा, तपेदिक या श्वास रोग से कष्ट होगा । मंगल-राहु या केतु-मंगल की युति हो तो शरीर में टयूमर या कैंसर से कष्ट होगा ।

चन्द्र-बुध या चन्द्र-मंगल की युति हो तो ग्रन्थि रोग से कष्ट होगा । गुरु-शुक्र की युति हो या ये आपस में दृष्टि संबंध बनाएं तो डॉयबिटीज के रोग से कष्ट होता है । शुक्र-केतु की युति हो तो स्वप्न दोष एवं पेशाब संबंधी रोग होते हैं ।।

गुरु-बुध की युति हो तो भी दमा या श्वास या तपेदिक रोग से कष्ट होगा । शुक्र-राहु की युति हो तो जातक नामर्द या नपुंसक होता है । मंगल-शनि की युति हो तो रक्त विकार, कोढ़ या जिस्म का फट जाना जैसे रोग से कष्ट होगा अथवा दुर्घटना से चोट-चपेट लगने के कारण कष्‍ट होता है ।

मित्रों, सूर्य-शुक्र की युति हो तो भी दमा या तपेदिक या श्वास रोग से कष्ट होता है । गुरु-मंगल या चन्द्र-मंगल की युति हो तो पीलिया रोग से कष्ट होता है । जो ग्रह बलवान होता है वे दूसरे को बीमारी देता है या जिस ग्रह की डिग्री ज्यादा हो वह बीमारी देता है ।

जैसे बुध गुरु की युति में बुध कम डिग्री का हो तो दमा एवं स्वाश की बीमारी अथवा तपेदिक होगा । रोग निदान में भी ज्योतिष का बड़ा योगदान है ।।

दैनिक जीवन में हम देखते हैं, कि जहां बड़े-बड़े चिकित्सक असफल हो जाते हैं । डॉक्टर थककर बीमारी एवं मरीज से निराश हो जाते हैं । वही मन्त्र-आशीर्वाद, प्रार्थनाएँ, यज्ञ हवन अनुष्ठान आदि काम कर जाते है ।।

साधारण व्यक्ति भी ज्योतिष शास्त्र के सम्यक ज्ञान से अनेक रोगों से बच सकता है । क्योंकि अधिकांश रोग सूर्य और चंद्रमा के विशेष प्रभावों से उत्पन्न होते हैं । फायलेरिया रोग चंद्रमा के प्रभाव के कारण ही एकादशी एवं अमावस्या को बढ़ता है ।।

हमारे पूर्वाचार्यों के अनुसार जिस प्रकार चंद्रमा समुद्र के जल में उथल-पुथल मचा देता है उसी प्रकार शरीर के रुधिर प्रवाह में भी अपना प्रभाव डालकर निर्बल मनुष्यों को निरोगी बना देता है ।।


इसलिए ज्योतिष द्वारा चंद्रमा के तत्वों से अवगत होकर एकादशी और अमावस्या को वैसे तत्वों वाले पदार्थों के सेवन से बचने पर फाइलेरिया या पागलपन और क्रोध या मानसिक रोग जैसे गंभीर बिमारियों से छुटकारा मिल सकता है ।।

मित्रों, चिकित्सा ज्योतिष के लिए छठे भाव और इसके स्वामी पर विस्तार से विचार करना चाहिए । रोग का समय निर्धारण करने के लिये प्रायः 6ठे, 8वें और 12वें घर के स्वामियों की दशाओं में और मूल रूप से लग्नेश की अंतर्दशा में रोग की उत्पत्ति होती है ।।

मेष लग्न की कुंडली में मंगल की दशा में बुध की अंतर्दशा के अंतर्गत बीमारियां आती है । यद्यपि मंगल लग्नेश होता है और मंगल की मूल त्रिकोण राशि लग्न में होती है फिर भी यह अष्टम भाव के स्वामी भी होते हैं ।।

साथ ही इस कुंडली में बुध छठे भाव का स्वामी होता है । वृषभ लग्न में छठे भाव में शुक्र की मूल त्रिकोण राशि तुला बैठती है । शुक्र महादशा में बृहस्पति की अंतर्दशा अथवा बृहस्पति की दशा में शुक्र की अंतर्दशा में कोई भारी रोग हो सकता है ।।


वृहस्पति नैसर्गिक रूप से इस लग्न के लिए अशुभ और अनिष्टकारी ग्रह माना जाता है । इस लग्न में बृहस्पति ग्यारहवें भाव का मालिक होता है जो छठे से छठा भाव होता है ।।

इसी प्रकार सभी लग्नों में 6, 8 और 12वें घर के मालिकों की दशाओं या अंतर्दशाओं के साथ-साथ लग्नेश की अंतर्दशा में जातक को गंभीर रोग होने के योग बनते हैं ।।

6, 8 और 12वें घरों में बैठे हुए ग्रह भी उनकी महादशा और अंतर्दशा में बीमारी को जन्म देते हैं । मृत्यु संबंधित मामलों में मारक ग्रहों की दशाओं में रोगों की प्रचंडता बढ़ जाती है ।।

मारक भाव में जैसे दूसरा और सातवां तथा आठवां और बारहवां घर इन घरों में स्थित ग्रह अपनी दशा-अंतर्दशा में रोग कारक बन जाते हैं ।।


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