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मारकेश ग्रह जब दशा में आता है, तो होता क्या है ? कैसे बचें मारक दशा से ? ।।



कुण्डली में मारकेश ग्रह कौन सा है, कैसे जानें ? मारक योग जब कुण्डली में आता है, तो होता क्या है ? कैसे बचें मारकेश की मारक दशा से ? ।। Markesha Graha Dasha in your horoscope.

हैल्लो फ्रेण्ड्सzzz, Astro Classes, Silvassa.


मित्रों, मारकेश ग्रह की दशा, अन्तर्दशा एवं प्रत्यंतर दशा में जातक का निश्चित मरण होता है । यदि मारकेश ग्रह के साथ जो पापी ग्रह बैठा हो तो उस ग्रह की दशा में भी जातक की मृत्यु सम्भव है । ध्यान रहे अष्टमेश की दशा स्वयं उसकी ही अन्तर्दशा मारक होती है । व्ययेश की दशा में धनेश मारक होता है तथा धनेश की दशा में व्ययेश भी प्रबल मारक होता है । इसी प्रकार छठे भाव के मालिक की दशा में अष्टम भाव के मालिक ग्रह की अन्तर्दशा मारक होती है ।।

मारकेश के विषय में ज्योतिष के विद्वानों का अलग अलग लग्नों के आधार पर कुछ ये विचर मिलते-जुलते हुए से हैं । मित्रों, जन्म लग्न से आठवाँ स्थान आयु का स्थान माना गया है । लघु पाराशरी से तीसरे स्थान (आठवें से आठवें स्थान) को भी आयु स्थान कहा गया है । आयु स्थान से बारहवें यानी सप्तम को भी मारक भाव कहा गया है । शास्त्रों में दूसरे भाव के मालिक को पहला मारकेश और सप्तम भाव के मालिक को दूसरा मारकेश बताया गया है । आठवाँ भाव मृत्यु का सूचक है, आयु और मृत्यु एक दूसरे से सम्बन्धित होते ही है और आयु का पूरा होना मृत्यु ही है ।।


मित्रों, मौत का असली कारण रोग, दुर्घटना या अन्य प्रकार से हुई मौत भी होते हैं । आठवें भाव से मौत और मनुष्य के जीवन का विचार किया जाता है । रोग का साध्य या असाध्य होना भी व्यक्ति के आयु का ही एक कारण होता है । जब तक आयु है तो कोई भी रोग असाध्य नहीं होता, किंतु आयु के समाप्त होते ही साधारण रोग भी असाध्य बन जाता है । इसलिये रोगों के साध्य-असाध्य होने का विचार भी इसी अष्टम भाव से ही किया जाता है ।।


बारहवें भाव को व्यय स्थान कहा जाता है व्यय का अर्थ है खर्च, अर्थात् हानि होना । रोग का अर्थ ही होता है शरीर की शक्ति अथवा जीवन शक्ति को कमजोर करना । बारहवें भाव से भी रोगों का विचार किया जाता है । इस स्थान से तो कभी-कभी मौत के कारणों का भी पता चल जाता है । अचानक दुर्घटना से मौत होना ये इसी द्वादश भाव से ही देखा जाता है । तथा इसी द्वादश भाव के द्वारा ही मोक्ष का भी पता किया जाता है ।।


मित्रों, मेष लग्न के जातकों का शुक्र मारकेश होकर भी उन्हें मारता नहीं है, परन्तु शनि और शुक्र मिलकर उसके साथ अनिष्ट अवश्य कर देते हैं । वैसे वृष लग्न के लिये गुरु घातक अवश्य होता है तथा मिथुन लग्न वाले जातकों के लिये चन्द्रमा घातक होता है परन्तु ये मारते नहीं हैं, हाँ मंगल और गुरु अशुभ अवश्य होते है । कर्क लग्न वाले जातकों के लिये सूर्य मारकेश होकर भी मारकेश नहीं होता है । हाँ परन्तु शुक्र इनके लिए घातक अवश्य होता है तथा सिंह लग्न वालों के लिये शनि मारकेश होकर भी मारता नहीं है परन्तु बुध यहाँ मारकेश का काम अवश्य करता है ।।


कन्या लग्न में सूर्य मारक होता है लेकिन वह अकेला प्राण नहीं लेता मंगल अथवा कोई और पाप ग्रह जब मारकेश के सहयोगी होते हैं तभी ये सम्भव होता है । तुला लग्न का मारकेश मंगल माना गया है, परन्तु यहाँ अशुभ फ़ल गुरु और सूर्य ही देते हैं । वृश्चिक लगन का गुरु मारकेश होकर भी मारता नहीं है, जबकि बुध सहायक मारकेश होकर पूर्ण मारकेश का काम करता है ।।


धनु लग्न की कुण्डली का मारक शनि है, पर अशुभ फ़ल यहाँ शुक्र देता है । मकर लग्न की कुण्डली में मंगल ग्रह घातक होता है, कुंभ लगन के लिये मारकेश गुरु होता है परन्तु घातक कार्य यहाँ मंगल करता है । मीन लग्न की कुण्डली में मंगल को मारक माना गया है परन्तु यहाँ शनि भी मारकेश का काम करता है । राहू-केतु के विषय में मान्यता ये है, कि ये छठे, आठवें एवं बारहवें भाव में हों तो ये भी मारक ग्रह का काम करते है ।।


इस विषय में आगे अपने आनेवाले अन्य लेखों में और भी विस्तृत चर्चा करेंगे । अब सात तारीख तक छुट्टी दें, क्योंकि गुरुपूर्णिमा के शुभ अवसर पर हमारी पूरी टीम गुरुदेव के दर्शनार्थ अयोध्या एवं बक्सर जा रहे हैं । आप सभी को भी गुरुपूर्णिमा की हार्दिक बधाई ।।


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।।। नारायण नारायण ।।।

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